उपराष्ट्रपति चुनाव में बड़ा दांव चलने की तैयारी में इंडी गठबंधन, गैर-कांग्रेसी को बनाया जा सकता है उम्मीदवार

नई दिल्ली। देश के उपराष्ट्रपति के लिए 9 सितंबर को वोटिंग होनी है। इसके लिए पक्ष और विपक्ष दोनों अपना-अपना उम्मीदवार चुनने के लिए दांव पेच लगा रहे हैं। इस बीच खबर है कि इंडी ब्लॉक आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव में गैर-कांग्रेसी उम्मीदवार को चुनने की तैयारी में है।

माना जा रहा है कि इसका मुख्य उद्देश्य सभी विपक्षी दलों को एकजुट करना है। जिससे भाजपा विरोधी वोटों को अपनी तरफ मोड़ा जा सके। बता दें कि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के कम से कम 11 वोट शामिल हैं।

विपक्ष किसे बनाएगा उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार?

गुरुवार को हुई बैठक में शामिल हुए एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा को विपक्ष का उम्मीदवार बनाए जाने का जिक्र करते हुए कहा, “हम पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव की गलती नहीं दोहरा सकते।”

बता दें कि उस समय संसद में दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस उम्मीदवार अल्वा का समर्थन करने से इनकार कर दिया था।

राहुल गांधी के आवास पर हुई डिनर पार्टी

गौरतलब है कि गुरुवार को विपक्ष के नेता राहुल गांधी के घर पर डिनर पार्टी का आयोजन किया गया था।

इस दौरान विपक्षी नेताओं की एक बैठक भी हुई, जिसमें कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और फारूक अब्दुल्ला,

टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी और डेरेक ओ ब्रायन तथा माकपा महासचिव एमए बेबी सहित 14 वरिष्ठ विपक्षी नेताओं ने भाग लिया। बताया जा रहा है कि इसी बैठक के दौरान उपराष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर चर्चा हुई।

क्या टीएमसी भी उतारेगी अपना उम्मीदवार?

बताया जा रहा है कि एक दूसरे विपक्षी नेता ने दावा किया कि इस उपराष्ट्रपति चुनाव में टीएमसी ने पार्टी उम्मीदवार उतारने की अनिच्छा जताई है।

वहीं, हाल के दिनों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मीडिया से बात करते हुए बताया था कि इंडी गठबंधन उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सामूहिक रूप से निर्णय लेगा।

एकजुट होकर चुनाव लड़ने की तैयारी

बताया जा रहा है कि राहुल गांधी के आवास पर गुरुवार को हुई बैठक में सभी नेता इस बात पर सहमत हुए कि इंडी गठबंधन को एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहिए।

हालांकि, इस दौरान कुछ विपक्षी नेताओं का तर्क था कि एनडीए के पास अपने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को हराने के लिए पर्याप्त संख्याबल है, लेकिन भारतीय गुट आसानी से चुनाव नहीं लड़ सकता और उसे वैचारिक आधार पर लड़ना होगा।

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