NHRC अध्यक्ष के चयन पर कांग्रेस ने जताई नाराजगी, कहा-आम सहमति की हुई अनदेखी

नई दिल्ली। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन पर विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने असहमति जताई है।

उन्होंने कहा कि अध्यक्ष और सदस्य के चयन की प्रक्रिया मौलिक रूप से गलत थी। यह पूर्व निर्धारित था। साथ ही नियुक्ति को लेकर परामर्श और आम सहमति की अनदेखी की गई।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वी राम सुब्रमण्यम को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नया अध्यक्ष बनाया है। जबकि खरगे और राहुल गांधी ने इस पद के लिए जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस कुट्टियिल मैथ्यू जोसेफ के नाम प्रस्तावित किए थे।

NHRC के अध्यक्ष सेवानिवृत्त जज अरुण कुमार मिश्रा का कार्यकाल एक जून को खत्म हो गया था। इसके बाद से आयोग के अध्यक्ष का पद खाली पड़ा था। नए अध्यक्ष और सदस्यों के चयन के लिए 18 दिसंबर को संसद में चयन समिति की बैठक हुई थी।

इसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने समिति की चयन प्रक्रिया को गलत बताया था। उन्होंने कहा कि यह पूर्व-निर्धारित था। इसमें आपसी परामर्श और आम सहमति को नजरअंदाज किया गया। इससे निष्पक्षता प्रभावित होती है।

दोनों नेताओं ने कहा कि विचार-विमर्श को बढ़ावा देने और सामूहिक निर्णय करने की बजाय समिति ने नामों पर मुहर लगाने के लिए संख्यात्मक बहुमत पर भरोसा किया।

जबकि बैठक में उठाए गए मुद्दों की अनदेखी की। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का काम सभी नागरिकों और खासकर समाज के उत्पीड़ित और हाशिए पर पड़े वर्गों के मानवाधिकारों की रक्षा करना है।

राहुल गांधी और खरगे ने यह कहा

अपने असहमति नोट में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने लिखा कि आयोग की संरचना समावेशिता और प्रतिनिधित्व पर काफी हद तक निर्भर करती है।

समिति का काम यह तय करना है कि मानवाधिकार आयोग विभिन्न समुदायों, मानवाधिकार उल्लंघन का सामना करने वाले संवेदनशील लोगों के प्रति संवेदनशील बना रहे।

इसलिए हमने योग्यता और समावेश की जरूरत देखते हुए अध्यक्ष पद के लिए न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति कुट्टीयल मैथ्यू जोसेफ के नाम प्रस्तावित किए हैं।

अल्पसंख्यक पारसी समुदाय के प्रतिष्ठित जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन अपनी बौद्धिक गहराई और सांविधानिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी नियुक्ति से NHRC के बारे में एक मजबूत संदेश जाएगा।

इसी तरह से अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जोसेफ ने लगातार ऐसे फैसले दिए हैं, जिनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हाशिए पर पड़े समूहों की सुरक्षा पर जोर दिया गया है।

इसलिए वह आयोग के अध्यक्ष पद के लिए एकदम सही उम्मीदवार हैं। वहीं सदस्यों के पद के लिए हमने जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस अकील अब्दुल हमीद कुरैशी के नामों की सिफारिश की। मानवाधिकारों की रक्षा करने का दोनों का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर है।

असहमति नोट में दोनों नेताओं ने लिखा कि आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति को लेकर योग्यता जरूरी है। लेकिन देश की क्षेत्रीय, जाति, समुदाय और धार्मिक विविधता में संतुलन बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।

इस संतुलन का प्रभाव होगा कि आयोग समावेशी दृष्टिकोण के साथ काम करेगा, लेकिन इन सब सिद्धांतों की अनदेखी करके समिति आयोग में जनता के विश्वास को खत्म करने का जोखिम उठा रही है।

खरगे ने कहा कि बैठक में चयन समिति के बहुमत को बड़ा मानकर सिद्धांतों की अनदेखी करने का दृष्टिकोण बेहद खेदजनक है। हमने जो नाम प्रस्तावित किए हैं, वे आयोग के मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप हैं। उनको न मानना प्रक्रिया की निष्पक्षता के बारे में महत्वपूर्ण चिंता पैदा करता है।

कैसे होती है NHRC प्रमुख की नियुक्ति

NHRC अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति एक चयन समिति की सिफारिश पर करते हैं। इस चयन समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, जबकि इसमें लोकसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता और राज्यसभा के उपसभापति भी सदस्य होते हैं।

जस्टिस मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद NHRC की सदस्य विजया भारती को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। 18  दिसंबर को हुई बैठक के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) वी. रामासुब्रमण्यन को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का अध्यक्ष नियुक्त किया। साथ ही, प्रियांक कानूनगो और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिद्युत रंजन सारंगी को आयोग का सदस्य नियुक्त किया।

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