नई दिल्ली। दिल्ली में अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बीती आधी रात केंद्र सरकार एक नया अध्यादेश लेकर आई है जिससे एक बार फिर से स्थिति बदल गई। राजधानी में आला अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग में अब दिल्ली सरकार की नहीं चलेगी।
दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र ने देर रात अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए सिविल सर्विस अथॉरिटी बनाने का फैसला किया है। राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी भी दे दी है।
ऐसे में यह सवाल फिर से तैरने लगा है कि दिल्ली का ‘बॉस’ अब कौन होगा? दरअसल, केंद्र सरकार ने अध्यादेश में जो व्यवस्था दी है उसमें सीएम को चीफ तो बनाया गया है लेकिन उनसे ऊपर LG होंगे। इस तरह से देखें तो दिल्ली में उपराज्यपाल की ही चलेगी।
दूसरी ओर अध्यादेश लाने से भड़की आम आदमी पार्टी ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी मारिलेना ने आरोप लगाया है कि यह अध्यादेश लोकतंत्र की हत्या करने के लिए लाया गया है। यह अध्यादेश दिल्ली की शक्तियों को गैर संवैधानिक तरीके से छीनने का प्रयास है।
आतिशी मारिलेना ने आगे कहा कि यह केंद्र का पहला प्रयास नहीं है। जब 2015 में आम आदमी पार्टी 67 सीट जीतकर आई तो भाजपा की सरकार ने तीन महीने के अंदर-अंदर एक गैर-कानूनी नोटिस जारी कर अरविंद केजरीवाल सरकार की ताकत छीनने की कोशिश की। मई 2015 में गृह मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी किया कि केजरीवाल सरकार के पास अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार नहीं रहेगा।
आतिशी आगे बोलीं कि आठ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास पूरी ताकत है और यह ताकत है अफसरों की जवाबदेही, अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग, भ्रष्ट अफसरों पर एक्शन लेने की ताकत है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मतलब हुआ कि अगर दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को चुना है तो निर्णय लेने की ताकत अरविंद केजरीवाल के पास है। लैंड, लॉ-एंड ऑर्डर और पुलिस को छोड़कर निर्णय लेने की ताकत अरविंद केजरीवाल की है लेकिन भाजपा से यह सहन नहीं हुआ।
क्या है अध्यादेश में
- दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए सिविल सर्विस अथॉरिटी बनेगी।
- दिल्ली के मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के चेयरमैन होंगे।
- दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी इसके सदस्य होंगे। दिल्ली के गृह सचिव भी इसके सदस्य सचिव बनाए गए हैं।
- अथॉरिटी में फैसले बहुमत के आधार पर होंगे।
- अगर उपराज्यपाल इस अथॉरिटी के फैसले से सहमत नहीं होते हैं तो वह इन फैसलों को पुनर्विचार के लिए दोबारा अथॉरिटी को भेज सकेंगे।
- हालांकि अगर अथॉरिटी दूसरी बार भी उपराज्यपाल को वही प्रस्ताव भेजती है तो उन्हें उसकी मंजूरी देनी होगी।
- प्राधिकरण की सलाह पर केंद्र सरकार जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए इसके (प्राधिकरण के) लिए आवश्यक अधिकारियों की श्रेणी का निर्धारण करेगी और प्राधिकरण को उपयुक्त अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी।
- मौजूदा किसी भी कानून के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण ‘ग्रुप-ए’ के अधिकारियों और दिल्ली सरकार से जुड़े मामलों में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ अधिकारियों के तबादले की सिफारिश कर सकेगा, लेकिन वह अन्य मामलों में सेवा दे रहे अधिकारियों के साथ ऐसा नहीं कर सकेगा।
- प्राधिकरण सभी मुद्दों पर फैसला उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से करेगा। सभी सिफारिशों का सदस्य सचिव सत्यापन करेंगे।
- प्राधिकरण अपने अध्यक्ष की मंजूरी से सदस्य सचिव द्वारा तय समय और स्थान पर बैठक करेंगे।
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर वाले अध्यादेश में कहा गया है कि दिल्ली के LG दूसरे राज्यपालों की तरह नहीं हैं। वे दिल्ली के प्रशासक भी हैं।