नई दिल्ली। 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो के माध्यम से इमरजेंसी का ऐलान किया। आपातकाल की घोषणा को पांच दशक होने को आए। आपातकाल की बरसी पर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की पत्रिका पाञ्चजन्य ने विशेष अंक छापा है।
जुलाई 2023 के अंक में इंदिरा की तुलना जर्मनी के तानाशाह एडॉल्फ हिटलर से की गई है। मैगजीन के कवर पर दोनों की तस्वीरों के नीचे शीर्षक दिया है- हिटलर गांधी! पत्रिका ने कवर पर कैप्शन में लिखा है, ‘दो तानाशाह , एक जैसी इबारत। क्या यूरोप नाजीवाद और फासीवाद का सच भुला सकता है? भारत में इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल को भुलाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। आइए याद करें 25 जून 1975 की काली रात से शुरू वह दास्तान।’
पत्रिका के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी यह कवर शेयर किया गया है। अभी तक कांग्रेस की ओर से RSS मैगजीन के इस अंक पर प्रतिक्रिया नहीं आई है।
जब हुई देश में आपातकाल लगाने की घोषणा
देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की 21 महीने की अवधि के लिए आपातकाल लागू था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी।
बीजेपी का देशव्यापी अभियान
बीजेपी आपातकाल की बरसी पर देशभर में कांग्रेस को घेरने के लिए कार्यक्रम करने जा रही है। वहीं सोशल मीडिया पर भी पोस्टर, बैनर और वीडियो के जरिए लोगों को खासकर युवा मतदाताओं को, जिन्होंने आपातकाल के बारे में अब तक सिर्फ सुना या पढ़ा है, यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल लगाकर किस तरह की ज्यादतियां की थीं।
सूत्रों के मुताबिक BJP ने अपने सभी सांसदों को 25 जून को आपातकाल से जुड़े कार्यक्रम करने और उसमें आपातकाल के खिलाफ लड़ने वाले लोगों के साथ-साथ आपातकाल की त्रासदी को झेलने वाले लोगों को भी आमंत्रित करने को कहा है, ताकि इन लोगों के जरिए पार्टी देश को आपातकाल के बारे में बता सकें।
18 जून को अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में युवा पीढ़ी को आपातकाल के बारे में बताने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि भारत लोकतंत्र की जननी है, मदर ऑफ डेमोक्रेसी है। हम, अपने लोकतांत्रिक आदर्शो को सर्वोपरि मानते हैं, अपने संविधान को सर्वोपरि मानते हैं, इसलिए, हम 25 जून को भी कभी भुला नहीं सकते।
यह वही दिन है, जब हमारे देश पर इमरजेंसी थोपी गई थी। यह भारत के इतिहास का काला दौर था। लाखों लोगों ने आपातकाल का पूरी ताकत से विरोध किया था। लोकतंत्र के समर्थकों पर उस दौरान इतना अत्याचार किया गया, इतनी यातनाएं दी गईं कि आज भी मन सिहर उठता है।