नई दिल्ली। बीते कुछ सालों में जिस हिसाब से टेक्नोलॉजी अपने पांव पसार रही है, ये लगभग सभी के आसपास में देखने को मिल सकती है। स्मार्टफोन, लैपटॉप टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रकार का एक बढ़िया उदाहरण है। हाथ में स्मार्टफोन और एक क्लिक में पूरी दुनिया की इनफॉर्मेशन ने डिजिटल ज्ञान की आंधी-सी ला दी है।
एक तरफ इसके कई फायदे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ इसके ढेरों नुकसान भी हैं। खासतौर से आज का यूथ जिस हिसाब से टेक्नोलॉजी पर निर्भर होता जा रहा है, ये उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अलार्मिंग संकेत है।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि 5 से 7 की उम्र के 23% बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने लगे हैं। वहीं, 50% तक 11 साल से ज्यादा बच्चों के पास खुद का स्मार्टफोन है। 8 से 17 साल के बच्चे 4 से 6 घंटे औसतन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं। इनमें भी 50% बच्चे रात 12 बजे से सुबह 5 बजे के बीच फोन का इस्तेमाल करते हैं।
टेक्नोलॉजी का मेंटल हेल्थ पर असर
- शोध के अनुसार रोजाना 2 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने से मेंटल डिसऑर्डर शुरू होने का खतरा बढ़ जाता है। इन सभी के साथ नींद खराब होती है, जो मानसिक के साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ये सीधे तौर पर मोटापे को न्योता देता है, जिससे अन्य बीमारियां जन्म लेना शुरू करती हैं।
- ज्यादा टेक्नोलॉजी से घिरे रहने से आज का यूथ अपने दिमाग का इस्तेमाल करना कम कर चुका है। इससे डिजिटल डिमेंशिया होने का खतरा बढ़ता है, जिसमें शॉर्ट टर्म मेमोरी प्रभावित होती है, चीजें कहां रखी हैं, आसानी से ये भूल जाते हैं, किसी शब्द या इवेंट को याद करने में दिक्कत होती है या फिर इनके लिए मल्टी टास्क करना बहुत ही मुश्किल होता है।
- रीट्वीट, लाइक, शेयर और कंटेंट बनाने की होड़ ब्रेन के उसी हिस्से को प्रभावित करती है, जो किसी एडिक्शन के दौरान होता है। इससे मिलने वाले रिवार्ड के प्रति एक एडिक्शन हो जाता है, जो लगातार कंटेंट बनाने के लिए प्रेरित करता है और एक समय के बाद स्ट्रेस और एंग्जायटी पैदा करने लगता है।
- सोशल मीडिया पर दिखते हंसते-खेलते चेहरे यूथ को बुरी तरह प्रभावित करते हैं और उन्हें अपना जीवन अभाव से भरा दिखना शुरू हो जाता है। इससे एक सोशल एंग्जायटी होती है, जो हीन भावना से ग्रसित होती है।