पंचकोष आधारित चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास पर कार्यशाला सम्पन्न

लखनऊ। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, अवध प्रांत द्वारा “पंचकोष आधारित चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास” विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय आवासीय कार्यशाला आज सफलता पूर्वक संपन्न हुई।

यह कार्यशाला 5 से 7 नवंबर तक इंदिरा नगर, लखनऊ स्थित ज्ञान गुरुकुलम सभागार में संपन्न हुई, जिसमें अवध प्रांत के विभिन्न जनपदों से पधारे लगभग 30 साधकों ने पूर्ण मनोयोग और समर्पण के साथ भाग लिया।

कार्यशाला का उद्देश्य “मनुष्य निर्माण से राष्ट्र निर्माण” की भावना पर आधारित था। कार्यक्रम का संचालन चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास विषय के प्रांत संयोजक ज्ञान पांडे द्वारा किया गया।

उन्होंने पंचकोषों — अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय कोष — के सम्यक विकास के माध्यम से मनुष्य में असाधारण, महामानवीय और दैवीय शक्तियों के प्रकटीकरण की संभावना पर विस्तार से प्रकाश डाला।

अवध प्रांत संयोजक प्रमिल द्विवेदी ने सभी साधकगणों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह कार्यशाला केवल ज्ञान का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि आत्मविकास की एक साधना है।

पंचकोषीय संतुलन के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की दिव्यता को पहचान सकता है।”उन्होंने कल्याण मंत्र के साथ कार्यशाला की पूर्णता की घोषणा की।

कार्यशाला की प्रमुख विशेषताएँ

ज्ञान पांडेय ने बताया कि पंचकोषों के साथ-साथ सात चक्रों (मूलाधार से सहस्रार तक), तीन शरीरों (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) तथा पीनियल व पिट्यूटरी ग्लैंड्स के संतुलन और मेलाटोनिन, डोपामाइन, सेरोटोनिन, ऑक्सीटोसिन, एंडोर्फिन जैसे हार्मोनों के संतुलन से व्यक्ति का समग्र विकास संभव है।

उन्होंने चेतावनी दी कि आज समाज में स्क्रीन एडिक्शन, व्यसन और नैतिक पतन जैसी विकृतियाँ तेजी से बढ़ रही हैं।

लगभग 80 प्रतिशत बच्चे और युवा स्क्रीन-आसक्ति के शिकार हैं, जिससे मानसिक असंतुलन और शारीरिक रोग बढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा यदि हमें स्वस्थ और सशक्त भारत का निर्माण करना है, तो चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व विकास को शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाना होगा।”

साधकों के अनुभव और लाभ

साधकों ने अनुभव साझा किया कि यम-नियमों — अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह — की साधना से षट्विकारों (काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, मात्सर्य) से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

आचार-शुद्धि के साथ करुणा, त्याग, परोपकार, क्षमा, दान जैसे सद्गुणों का विकास होता है।

कुंडलिनी जागरण, बौद्धिक शक्ति और विवेक के उदय से व्यक्ति में सूक्ष्म दृष्टि, दूरदर्शिता और मार्गदर्शन क्षमता विकसित होती है।

विज्ञानमय कोष के जागरण से दैवीय एवं महामानवीय शक्तियों के प्रकट होने की अपार संभावनाएँ बनती हैं।

अंत में, न्यास ने घोषणा की कि निकट भविष्य में प्रदेश के स्कूलों और कॉलेजों में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास विषय पर विशेष सत्रों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा।

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