नई दिल्ली। अनुच्छेद 370 पर सुनवाई के दौरान बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम सवाल किया। अगर जम्मू कश्मीर का संविधान इतना महत्वपूर्ण था तो भारतीय संविधान में 1957 के बाद इसका जिक्र क्यों नहीं हुआ? शीर्ष अदालत अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुन रही है।
गोपाल सुब्रमण्यम की दलील पर सीजेआई का सवाल
याचिकाकर्ता मुजफ्फर इकबाल खान की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने दलील दी कि 1957 वाले राज्य संविधान के तहत मिली ऑटोनॉमी को बिना ‘जम्मू कश्मीर के लोगों की इच्छा’ के खत्म नहीं किया जा सकता।
इस पर पीठ ने पूछा जब भारत की संप्रभुता स्वीकार ली फिर ऑटोनामी का कैसा दावा? प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं।
सुब्रमण्यम ने कहा कि अनुच्छेद 370 अनियंत्रित शक्ति का भंडार नहीं, राज्य में संविधान लागू करने का एक माध्यम था। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं करना चाहती थी। उसने इसे जारी रखने की अनुमति दी थी।
सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 370 में निर्मित संघवाद को निरस्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच संघीय व्यवस्था की रूपरेखा स्थापित की।
सुब्रमण्यम ने कहा कि भारत का संविधान और जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच संबंधों की सराहना करता है और ‘अनुच्छेद 370 के माध्यम से दोनों संविधान एक-दूसरे से बात करते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात पर विचार करने का आग्रह करता हूं कि विधानसभा और संविधान सभा दोनों को हमारे संविधान में मान्यता प्राप्त है। मूल संरचना दोनों संविधानों से ली जाएगी।’
सुब्रमण्यम ने अनुच्छेद 370 के सीमांत नोट का उल्लेख किया, जिसे ‘जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान’ के रूप में पढ़ा जाता है और कहा कि यह कहना गलत होगा कि 370 (3) अस्थायी है।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा प्रावधान को जारी रखना चाहती थी। उन्होंने कहा कि व्याख्या प्रावधान का उपयोग करते हुए संविधान सभा को विधानसभा के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता, क्योंकि यह अनुच्छेद 370 (डी) में एक संशोधन होगा।
इस पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हमें ध्यान देना चाहिए कि हालांकि भारतीय संविधान जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की बात करता है, लेकिन यह जम्मू और कश्मीर के संविधान का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं करता है।’
इससे पहले, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया था कि ‘संविधान शक्ति’ और ‘विधायी शक्ति’ के बीच अंतर मौजूद है और एक विधानसभा को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
पीठ सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर 2 अगस्त से लगातार मामले की सुनवाई कर रही है। सिब्बल और सुब्रमण्यम की दलीलें पूरी हो चुकी हैं। राजीव धवन, दुष्यंत दवे समेत अन्य वकील मामले में याचिकाकर्ताओं और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश करेंगे।
‘अनुच्छेद 370 कोई सौदेबाजी की चीज नहीं’
सुब्रमण्यम ने कहा, ‘अनुच्छेद 370 से जुड़े दस्तावेजों में भले ही ‘अस्थायी’ शब्द दिखाई देता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर संविधान सभा द्वारा पारित प्रस्ताव में कहा गया था कि भारत का संविधान इन संशोधनों के साथ लागू होना चाहिए। अनुच्छेद 370 के माध्यम से जम्मू-कश्मीर का संविधान और भारतीय संविधान एक दूसरे से जुड़े थे।’
सुब्रमण्यम ने कहा, अनुच्छेद 370 को सत्ता की राजनीति या सौदेबाजी की चीज के रूप में नहीं पढ़ा या समझा जाना चाहिए। बल्कि, इसकी व्याख्या भारतीय लोगों और जम्मू-कश्मीर राज्य के लोगों के बीच एक सैद्धांतिक समझौते के रूप में की जानी चाहिए।’
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती देते हुए राजनीतिक दलों, निजी व्यक्तियों, वकीलों, कार्यकर्ताओं आदि द्वारा बड़ी संख्या में याचिकाएं दायर की गई हैं।