वॉशिंगटन। ईरान के इस्राइल पर हमले के बाद रविवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की आपात बैठक बुलाई गई। इस बैठक में ईरान के राजनयिक भी शामिल हुए। बैठक में ईरान के राजनयिक ने इस्राइल पर हमले का बचाव करते हुए सफाई दी कि उनके पास कोई और रास्ता ही नहीं बचा था और उन्हें हमला करना पड़ा।
ईरान का दावा- कोई रास्ता नहीं बचा था
UNSC में ईरान के राजदूत आमिर सईद इरवानी ने कहा कि ‘इस्लामिक गणराज्य ईरान ने आत्मरक्षा के अधिकार के तहत इस्राइल पर हमला किया। इस्राइल के दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहा। ऐसे में तेहरान के पास कोई रास्ता ही नहीं बचा और उसे जवाब देना पड़ा।’ ईरान के राजनयिक ने ये भी कहा कि ‘उनका देश नहीं चाहता कि संघर्ष बढ़े, लेकिन अगर कोई भी आक्रामक कार्रवाई हुई तो वह उसका जवाब देंगे।’
इस्राइल ने ईरान पर लगाए ये आरोप
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में इस्राइल के राजदूत ने ईरान पर गंभीर आरोप लगाए और क्षेत्र में अशांति के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया। इस्राइल के राजदूत ने कहा कि ईरान का मुखौटा उतर चुका है। वह दुनियाभर में आतंकवाद को पोषित करता है और क्षेत्र में अशांति के लिए भी ईरान जिम्मेदार है। इस्राइल के राजदूत ने मांग की कि ईरानी सेना रिवोल्यूशनरी गार्ड्स को एक आतंकी संगठन घोषित कर दिया जाना चाहिए और बहुत देर हो जाए, उससे पहले ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगा देने चाहिए।
ईरान ने इस्राइल पर किया था हवाई हमला
बता दें कि शनिवार को ईरान ने इस्राइल पर 300 से ज्यादा ड्रोन्स और मिसाइलों से सीधा हमला किया। हालांकि इस हमले में इस्राइल को खास नुकसान नहीं हुआ और इस्राइल के एयर डिफेंस सिस्टम ने करीब सारी मिसाइलों और ड्रोन्स को इंटरसेप्ट कर हवा में ही तबाह कर दिया। इसमें इस्राइल को अमेरिका, जॉर्डन और ब्रिटेन से भी मदद मिली।
ईरान का कहना है कि यह हमला बीती 1 अप्रैल को इस्राइल द्वारा सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी दूतावास की इमारत पर कथित तौर पर हमला किया, जिसमें ईरानी सेना के सात अधिकारी मारे गए, जिनमें दो शीर्ष कमांडर शामिल थे।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दोनों देशों से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने ईरान के इस्राइल पर हमले की आलोचना की, साथ ही इस्राइल के दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हमले की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि अब दोनों देशों को पीछे हट जाना चाहिए और संघर्ष को नहीं बढ़ाना चाहिए।