
प्रयागराज। उप्र के इलाहाबाद हाई कोर्ट के कस्टडी मामले में आए फैसले की इस समय खूब चर्चा हो रही है। हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के क्रम में कहा है कि मां ही बेटी की सबसे बड़ी हितैषी होती है।
बच्चों की कस्टडी के चल रहे मामलों में इलाहाबाद हाई कोर्ट की इस टिप्पणी को अहम माना जा रहा है। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ 12 वर्षीय बेटी की कस्टडी मां को सौंप दी। दिल्ली की एक लेक्चरर की याचिका पर सुनवाई के क्रम यह फैसला आया है।
क्या है पूरा मामला?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के क्रम में कहा है कि बेटी की सबसे बड़ी हितैषी मां ही होती है। जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने मामले में मां को 12 वर्षीय बच्ची की कस्टडी सौंप दी।
जस्टिस दिवाकर ने कहा कि किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ी बेटी के लिए मां का साथ होना जरूरी है।लेक्चरर ने दर्ज कराई याचिकादिल्ली के कॉलेज में काम करने वाली लेक्चरर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
अर्जी में उन्होंने कहा कि पति ने बेटी को 2021 में गोरखपुर ले जाकर छलपूर्वक अलग कर दिया। उन्होंने वॉट्सऐप चैट और गूगल मैप की लोकेशन को सबूत के तौर पर पेश किया।
बच्ची के पिता ने आरोप लगाया कि पत्नी ने खुद उनका साथ छोड़ा था। निचली अदालत ने बेटी के बयान के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी।
हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को पलट दिया। कोर्ट ने लखनऊ पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया कि पति किसी भी स्थिति में अपने पद की स्थिति का दुरुपयोग न कर सकें। इसका ख्याल रखा जाए।