
वाशिंगटन। अमेरिका में H-1B वीजा शुल्क को लेकर ट्रंप प्रशासन का हालिया फैसला अमेरिका में सियासी और कानूनी बहस का बड़ा मुद्दा बन गया है।
ट्रंप प्रशासन की तरफ से H-1B वीजा पर एक लाख डॉलर की भारी-भरकम फीस लगाने के फैसले के खिलाफ अब खुद अमेरिका के 20 राज्यों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
राज्यों का कहना है कि यह फैसला गैरकानूनी है और इससे स्कूलों, अस्पतालों और अन्य जरूरी सेवाओं में स्टाफ की कमी और गंभीर हो जाएगी।
बता दें कि यह मुकदमा होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट (डीएसएस) की उस नीति के खिलाफ है, जिसमें एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों से बहुत ज्यादा फीस लेने की बात कही गई है।
एच-1बी वीजा का इस्तेमाल आमतौर पर अस्पताल, विश्वविद्यालय और सरकारी स्कूल जैसे संस्थान करते हैं, ताकि वे विदेश से कुशल कर्मचारियों को रख सकें।
राज्यों की दलील क्या है?
राज्यों ने ट्रंप के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में दलील दी है। राज्यों का कहना है कि यह फैसला प्रशासनिक प्रक्रिया कानून का उल्लंघन करता है।
राज्यों ने इस बात पर भी जोर दिया कि ट्र्ंप प्रशासन का ये फैसला अमेरिकी संविधान के भी खिलाफ है। कांग्रेस ने कभी भी इतनी ज्यादा फीस लगाने की अनुमति नहीं दी।
राज्यों ने कहा कि पहले एच-1बी वीजा की फीस सिर्फ सिस्टम चलाने के खर्च तक सीमित रहती थी। अभी तक एच-1बी वीजा के लिए कंपनियों को कुल मिलाकर 960 डॉलर से 7,595 डॉलर तक फीस देनी पड़ती है।
राज्यों का कहना है कि यह फैसला कांग्रेस की सीमा से बाहर जाकर लिया गया है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
कौन-कौन से राज्य इस केस में शामिल हैं?
ट्रंप प्रशासन के खिलाफ कोर्ट पहुंचे 20 राज्यों में कैलिफोर्निया और मैसाचुसेट्स के साथ-साथ एरिजोना, कोलोराडो, कनेक्टिकट, डेलावेयर, हवाई, इलिनॉय, मैरीलैंड, मिशिगन, मिनेसोटा, नेवादा, नॉर्थ कैरोलाइना, न्यू जर्सी, न्यूयॉर्क, ओरेगन, रोड आइलैंड, वर्मोंट, वॉशिंगटन और विस्कॉन्सिन जैसे राज्य शामिल है।





