HDFC BANK कर्मियों ने वरिष्ठ नागरिक को ‘डिजिटल अरेस्ट’ की ठगी से बचाया, एक करोड़ का था मामला

वाराणसी। वाराणसी में HDFC BANK की लंका शाखा के सतर्क कर्मचारियों ने एक वरिष्ठ नागरिक को ‘डिजिटल अरेस्ट’ धोखाधड़ी के माध्यम से एक करोड़ रुपये की ठगी से बचाया है।

बैंक के एक सीनियर सिटिज़न ग्राहक अपनी एक करोड़ रुपये की FD रसीदें लेकर वाराणसी में HDFC BANK की लंका शाखा में पहुंचे और FD को तुरंत भुनाने पर जोर डालने लगा। बैंक के शाखा प्रबंधक ने नोटिस किया कि ग्राहक चिंतित दिख रहा है तो उन्हें यह भांपने में देर नहीं लगी कि कुछ गड़बड़ है।

शाखा प्रबंधक ने अपने रिलेशनशिप मैनेजर (RM) से ग्राहक से बात करने को लेकर  कहा तो उन्होंने देखा कि उक्त ग्राहक किसी ऐसे व्यक्ति के साथ कॉल पर सक्रिय था जो उससे लगातार भुगतान की प्रगति पर अपडेट ले रहा था। इस पर RM को संदेह हुआ कि यह साइबर धोखाधड़ी (डिजिटल अरेस्ट) का मामला हो सकता है।

RM ने ग्राहक से बात की और उसे इस तरह की धोखाधड़ी के तौर-तरीकों के बारे में बताया और फिर तुरंत पुलिस स्टेशन वाराणसी को सूचित किया। पुलिस ने तुरंत करवाई करते हुए ग्राहक के नंबर ब्लॉक करवाकर मामले की रिपोर्ट करने में मदद की।

इस ठगी के मामले में जालसाजों ने पुलिस अधिकारी बनकर ग्राहक को ठगने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि उनके खाते का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया जा रहा है और मामले की आगे जांच की जा रही है।

फिर जालसाजों ने ग्राहक से पैसे एक खाते में भेजने के लिए कहा और कहा कि RBI का खाता है। उन्हें ग्राहक को यह भी बताया कि अगर वह निर्दोष साबित होती हैं तो पैसे ब्याज के साथ वापस कर दिए जाएंगे।

ग्राहक को कि गई वीडियो कॉल के दौरान जालसाजों ने पुलिस अधिकारियों की पोशाक पहनी हुई थी और एक फर्जी गिरफ्तारी वारंट दिखाया था। बैंक स्टाफ कि सूझबूझ से ग्राहक के साथ होने वाली लाखों रूपये कि ठगी से बचाव हो गया।

क्या होता है ‘डिजिटल अरेस्ट’

डिजिटल अरेस्ट में जालसाज कानून प्रवर्तन या सरकारी अधिकारियों के रूप में भोले भाले लोगों को निशाना बनाते हैं। पीड़ितों को मोबाईल पर वाट्सएप के ज़रिये बकायदा वीडियों काल कर कथित कर चोरी, विनियामक उल्लंघन या वित्तीय घोटाले के लिए डिजिटल अरेस्ट वारंट की धमकी दी जाती है।

जालसाज डिजिटलअरेस्ट वारंट को वापस लेने के लिए ‘निपटान शुल्क’ या ‘जुर्माना’ के रूप में भुगतान मांगते हैं। भुगतान हो जाने के बाद, धोखेबाज अपनी पहचान का कोई निशान छोड़े बिना गायब हो जाते हैं। धोखेबाजों के साथ साझा की गई व्यक्तिगत जानकारी के कारण पीड़ितों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।

डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड से खुद को बचाने के लिए सुझाव

* असली सरकारी अधिकारी या कानून प्रवर्तन एजेंसी कभी भी भुगतान या बैंकिंग विवरण नहीं मांगेगी।

* जालसाज अक्सर अपने शिकार (पीड़ितों) को बिना सोचे-समझे तुरंत उनका कहना मानने के लिए उकसाते हैं।

* केवाईसी विवरण, बैंक विवरण जैसे – यूजर आईडी पासवर्ड, कार्ड विवरण, सीवीवी, ओटीपी या पिन नंबर जैसी संवेदनशील जानकारी किसी के साथ साझा न करें।

किसी अधिकारी की पहचान स्वतंत्र रूप से सरकारी अधिकारियों या कानून प्रवर्तन एजेंसी से संपर्क करके सत्यापित की जानी चाहिए।

* दस्तावेजों में त्रुटियों की जाँच करें और संदिग्ध लिंक पर क्लिक करने से बचें।

* दूरसंचार विभाग के चक्षु पोर्टल – www.sancharsaathi.gov.in पर ऐसे संदिग्ध धोखाधड़ी वाले मामलों  की तुरंत रिपोर्ट करें।

ऑनलाइन धोखाधड़ी का शिकार होने की स्थिति में पीड़ित को तुरंत बैंक को अनधिकृत लेनदेन की सूचना देनी चाहिए ताकि तुरंत कार्ड/UPI/नेट बैंकिंग आदि भुगतान चैनल को ब्लॉक किया जा सके और भविष्य में होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

ग्राहकों को गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा शुरू की गई 1930 हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके भी शिकायत दर्ज करनी चाहिए और साथ ही राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल https://www.cybercrime.gov.in पर भी शिकायत दर्ज करनी चाहिए।

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