‘कल शाम कुछ बड़ा हुआ’, धनखड़ के इस्तीफे पर कांग्रेस का दावा; नड्डा-रिजिजू का लिया नाम

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार यानी 21 जुलाई 2025 की शाम अपने पद से इस्तीफे दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भेजे गए पत्र में खराब स्वास्थ्य को कारण बताया है। इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारे में कयासों का बाजार गर्म हो गया है।

इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट कर इस्तीफे को लेकर संशय जाहिर किया है। उन्होंने लिखा, “कल दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की अध्यक्षता की।

इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत ज़्यादातर सदस्य मौजूद थे। थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि समिति की अगली बैठक शाम 4:30 बजे फिर से होगी।”

शाम 4:30 बजे धनखड़ जी की अध्यक्षता में समिति के सदस्य दोबारा बैठक के लिए इकट्ठा हुए।सभी नड्डा और रिजिजू का इंतजार करते रहे, लेकिन वे नहीं आए।

सबसे हैरानी की बात यह थी कि धनखड़ जी को व्यक्तिगत रूप से यह नहीं बताया गया कि दोनों मंत्री बैठक में नहीं आएंगे। स्वाभाविक रूप से उन्हें इस बात का बुरा लगा और उन्होंने BAC की अगली बैठक आज दोपहर 1 बजे के लिए टाल दी।

इस्तीफे के पीछे कुछ और गहरे कारण’

कांग्रेस नेता ने आगे लिखा, “इससे साफ है कि कल दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच ज़रूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया।

अब एक बेहद चौंकाने वाला कदम उठाते हुए जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसकी वजह अपनी सेहत को बताया है। हमें इसका मान रखना चाहिए। लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं।”

रमेश ने कहा धनखड़ ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज उठाई।

उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते ‘अहंकार’ की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही और संयम की जरूरत पर जोर दिया। मौजूदा ‘G2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की।

जयराम रमेश ने कहा, “वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे। लेकिन उन्हें लगता था कि उनकी भूमिका में लगातार इन बातों की अनदेखी हो रही है।

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है। साथ ही, यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था।”

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