
नई दिल्ली। देवोत्थानी या देवउठान अथवा देवशयनी एकादशी का हिंदू धर्म में खास महत्व है। इस दिन देवता जागृत होते हैं और इस दिन से चातुर्मास का समापन होकर शुभ मुहूर्त काल का आरंभ माना जाता है। इस साल देवउठान एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी और उसके अगले दिन तुलसी विवाह होगा।
देवउठान एकादशी को एक अबूझ मुहूर्त माना जाता है और इस दिन से शादी, ब्याह और सभी शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन से सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु और समस्त देवता 4 महीने की योग निद्रा से जागते हैं और अपना-अपना कार्यभार ग्रहण कर लेते हैं। देवताओं के जागने के बाद ही सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।
देवउठान एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
देवशयनी एकादशी की तिथि का आरंभ 22 नवंबर को रात में 11 बजकर 3 मिनट पर होगा और समापन 23 नवंबर को रात में 9 बजकर 1 पर मिनट पर होगा। इस प्रकार देवउठान एकादशी का व्रत 23 नवंबर को गुरुवार को रखा जाएगा। व्रत का पारण 24 नवंबर को सुबह 6 बजे से 8 बजकर 13 मिनट तक करना शुभ होगा।
देवउठान एकादशी का महत्व
देवोत्थानी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु 4 महीने की योगनिद्रा से बाहर आ जाते हैं और उसके बाद वे सृष्टि का कार्य देखने का अपना काम आरंभ कर देते हैं। उसके बाद देवउठान एकादशी के दिन से भगवान विष्णु पाताल लोक छोड़कर वापस वैकुंठ धाम आ जाते हैं।
चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन से देवउठनी एकादशी तक पाताल में वास करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन से आरंभ होकर विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
देवोत्थानी एकादशी पर तुलसी पूजा का महत्व
इस देवोत्थानी एकादशी पर तुलसी माता की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन तुलसी के चारों ओर आटे और हल्दी से स्तंभ बनाकर उनकी पूजा की जाती है और उनकी परिक्रमा की जाती है। इस दिन तुलसी के साथ आंवले का गमला भी लगाना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन शंख, चक्र और गाय के पैर बनाकर उनकी पूजा की जाती है।





